18. अनर्थ कल्पना गढ़ने वाला मन, बुराई करने को वेग दौड़ने वाले पांव,
19. झूठ बोलने वाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करने वाला मनुष्य।
20. हे मेरे पुत्र, मेरी आज्ञा को मान, और अपनी माता की शिक्षा का न तज।
21. इन को अपने हृदय में सदा गांठ बान्धे रख; और अपने गले का हार बना ले।
22. वह तेरे चलने में तेरी अगुवाई, और सोते समय तेरी रक्षा, और जागते समय तुझ से बातें करेगी।
23. आज्ञा तो दीपक है और शिक्षा ज्योति, और सिखाने वाले की डांट जीवन का मार्ग है,
24. ताकि तुझ को बुरी स्त्री से बचाए और पराई स्त्री की चिकनी चुपड़ी बातों से बचाए।
25. उसकी सुन्दरता देख कर अपने मन में उसकी अभिलाषा न कर; वह तुझे अपने कटाक्ष से फंसाने न पाए;
26. क्योंकि वेश्यागमन के कारण मनुष्य टुकड़ोंका भिखारी हो जाता है, परन्तु व्यभिचारिणी अनमोल जीवन का अहेर कर लेती है।
27. क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले; और उसके कपड़े न जलें?
28. क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पांव न झुलसें?
29. जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है; वरन जो कोई उस को छूएगा वह दण्ड से न बचेगा।
30. जो चोर भूख के मारे अपना पेट भरने के लिये चोरी करे, उसको तो लोग तुच्छ नहीं जानते;