10. या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें, और परदेशी मनुष्य तेरे परिश्रम का फल अपने घर में रखें;
11. और तू अपने अन्तिम समय में जब कि तेरा शरीर क्षीण हो जाए तब यह कह कर हाय मारने लगे, कि
12. मैं ने शिक्षा से कैसा बैर किया, और डांटने वाले का कैसा तिरस्कार किया!
13. मैं ने अपने गुरूओं की बातें न मानी और अपने सिखाने वालों की ओर ध्यान न लगाया।
14. मैं सभा और मण्डली के बीच में प्राय: सब बुराइयों में जा पड़ा॥
15. तू अपने ही कुण्ड से पानी, और अपने ही कूंए से सोते का जल पिया करना।
16. क्या तेरे सोतों का पानी सड़क में, और तेरे जल की धारा चौकों में बह जाने पाए?
17. यह केवल तेरे ही लिये रहे, और तेरे संग औरों के लिये न हो।
18. तेरा सोता धन्य रहे; और अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रह,
19. प्रिय हरिणी वा सुन्दर सांभरनी के समान उसके स्तन सर्वदा तुझे संतुष्ट रखे, और उसी का प्रेम नित्य तुझे आकषिर्त करता रहे।
20. हे मेरे पुत्र, तू अपरिचित स्त्री पर क्यों मोहित हो, और पराई को क्यों छाती से लगाए?
21. क्योंकि मनुष्य के मार्ग यहोवा की दृष्टि से छिपे नहीं हैं, और वह उसके सब मार्गों पर ध्यान करता है।