18. तीन बातें मेरे लिये अधिक कठिन है, वरन चार हैं, जो मेरी समझ से परे हैं:
19. आकाश में उकाब पक्षी का मार्ग, चट्टान पर सर्प की चाल, समुद्र में जहाज की चाल, और कन्या के संग पुरूष की चाल॥
20. व्यभिचारिणी की चाल भी वैसी ही है; वह भोजन कर के मुंह पोंछती, और कहती है, मैं ने कोई अनर्थ काम नहीं किया॥
21. तीन बातों के कारण पृथ्वी कांपती है; वरन चार है, जो उस से सही नहीं जातीं:
22. दास का राजा हो जाना, मूढ़ का पेट भरना
23. घिनौनी स्त्री का ब्याहा जाना, और दासी का अपनी स्वामिन की वारिस होना॥
24. पृथ्वी पर चार छोटे जन्तु हैं, जो अत्यन्त बुद्धिमान हैं:
25. च्यूटियां निर्बल जाति तो हैं, परन्तु धूप काल में अपनी भोजन वस्तु बटोरती हैं;
26. शापान बली जाति नहीं, तौभी उनकी मान्दें पहाड़ों पर होती हैं;
27. टिड्डियों के राजा तो नहीं होता, तौभी वे सब की सब दल बान्ध बान्ध कर पलायन करती हैं;
28. और छिपकली हाथ से पकड़ी तो जाती है, तौभी राजभवनों में रहती है॥
29. तीन सुन्दर चलने वाले प्राणी हैं; वरन चार हैं, जिन की चाल सुन्दर है:
30. सिंह जो सब पशुओं में पराक्रमी हैं, और किसी के डर से नहीं हटता;
31. शिकारी कुत्ता और बकरा, और अपनी सेना समेत राजा।
32. यदि तू ने अपनी बड़ाई करने की मूढ़ता की, वा कोई बुरी युक्ति बान्धी हो, तो अपने मुंह पर हाथ धर।
33. क्योंकि जैसे दूध के मथने से मक्खन और नाक के मरोड़ने से लोहू निकलता है, वैसे ही क्रोध के भड़काने से झगड़ा उत्पन्न होता है॥