8. जो सोच विचार के बुराई करता है, उस को लोग दुष्ट कहते हैं।
9. मूर्खता का विचार भी पाप है, और ठट्ठा करने वाले से मनुष्य घृणा करते हैं॥
10. यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।
11. जो मार डाले जाने के लिये घसीटे जाते हैं उन को छुड़ा; और जो घात किए जाने को हैं उन्हें मत पकड़ा।
12. यदि तू कहे, कि देख मैं इस को जानता न था, तो क्या मन का जांचने वाला इसे नहीं समझता? और क्या तेरे प्राणों का रक्षक इसे नहीं जानता? और क्या वह हर एक मनुष्य के काम का फल उसे न देगा?
13. हे मेरे पुत्र तू मधु खा, क्योंकि वह अच्छा है, और मधु का छत्ता भी, क्योंकि वह तेरे मुंह में मीठा लगेगा।
14. इसी रीति बुद्धि भी तुझे वैसी ही मीठी लगेगी; यदि तू उसे पा जाए तो अन्त में उसका फल भी मिलेगा, और तेरी आशा न टूटेगी॥
15. हे दुष्ट, तू धर्मी के निवास को नाश करने के लिये घात को न बैठ; ओर उस के विश्रामस्थान को मत उजाड़;
16. क्योंकि धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है; परन्तु दुष्ट लोग विपत्ति में गिर कर पड़े ही रहते हैं।
17. जब तेरा शत्रु गिर जाए तब तू आनन्दित न हो, और जब वह ठोकर खाए, तब तेरा मन मगन न हो।
18. कहीं ऐसा न हो कि यहोवा यह देख कर अप्रसन्न हो और अपना क्रोध उस पर से हटा ले॥
19. कुकमिर्यों के कारण मत कुढ़ दुष्ट लोगों के कारण डाह न कर;
20. क्योंकि बुरे मनुष्य को अन्त में कुछ फल न मिलेगा, दुष्टों का दिया बुझा दिया जाएगा॥
21. हे मेरे पुत्र, यहोवा और राजा दोनों का भय मानना; और बलवा करने वालों के साथ न मिलना;