32. क्योंकि अन्त में वह सर्प की नाईं डसता है, और करैत के समान काटता है।
33. तू विचित्र वस्तुएं देखेगा, और उल्टी-सीधी बातें बकता रहेगा।
34. और तू समुद्र के बीच लेटने वाले वा मस्तूल के सिरे पर सोने वाले के समान रहेगा।
35. तू कहेगा कि मैं ने मार तो खाई, परन्तु दु:खित न हुआ; मैं पिट तो गया, परन्तु मुझे कुछ सुधि न थी। मैं होश में कब आऊं? मैं तो फिर मदिरा ढूंढूंगा॥