नीतिवचन 21:1-19 हिंदी पवित्र बाइबल (HHBD)

1. राजा का मन नालियों के जल की नाईं यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उस को फेर देता है।

2. मनुष्य का सारा चाल चलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है,

3. धर्म और न्याय करना, यहोवा को बलिदान से अधिक अच्छा लगता है।

4. चढ़ी आंखें, घमण्डी मन, और दुष्टों की खेती, तीनों पापमय हैं।

5. कामकाजी की कल्पनाओं से केवल लाभ होता है, परन्तु उतावली करने वाले को केवल घटती होती है।

6. जो धन झूठ के द्वारा प्राप्त हो, वह वायु से उड़ जाने वाला कोहरा है, उसके ढूंढ़ने वाले मृत्यु ही को ढूंढ़ते हैं।

7. जो उपद्रव दुष्ट लोग करते हैं, उस से उन्हीं का नाश होता है, क्योंकि वे न्याय का काम करने से इनकार करते हैं।

8. पाप से लदे हुए मनुष्य का मार्ग बहुत ही टेढ़ा होता है, परन्तु जो पवित्र है, उसका कर्म सीधा होता है।

9. लम्बे-चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है।

10. दुष्ट जन बुराई की लालसा जी से करता है, वह अपने पड़ोसी पर अनुग्रह की दृष्टि नही करता।

11. जब ठट्ठा करने वाले को दण्ड दिया जाता है, तब भोला बुद्धिमान हो जाता है; और जब बुद्धिमान को उपदेश दिया जाता है, तब वह ज्ञान प्राप्त करता है।

12. धर्मी जन दुष्टों के घराने पर बुद्धिमानी से विचार करता है; ईश्वर दुष्टों को बुराइयों में उलट देता है।

13. जो कंगाल की दोहाई पर कान न दे, वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी।

14. गुप्त में दी हुई भेंट से क्रोध ठण्डा होता है, और चुपके से दी हुई घूस से बड़ी जलजलाहट भी थमती है।

15. न्याय का काम, करना धर्मी को तो आनन्द, परन्तु अनर्थकारियों को विनाश ही का कारण जान पड़ता है।

16. जो मनुष्य बुद्धि के मार्ग से भटक जाए, उसका ठिकाना मरे हुओं के बीच में होगा।

17. जो रागरंग से प्रीति रखता है, वह कंगाल होता है; और जो दाखमधु पीने और तेल लगाने से प्रीति रखता है, वह धनी नहीं होता।

18. दुष्ट जन धर्मी की छुडौती ठहरता है, और विश्वासघाती सीधे लोगों की सन्ती दण्ड भोगते हैं।

19. झगड़ालू और चिढ़ने वाली पत्नी के संग रहने से जंगल में रहना उत्तम है।

नीतिवचन 21