1. हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े,
2. और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगा कर सोचे;
3. और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे,
4. ओर उस को चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसी खोज में लगा रहे;