18. तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिये होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन होगा।
19. फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें,
20. तब उस मेंड़े को बलि करना, और उसके लोहू में से कुछ ले कर हारून और उसके पुत्रों के दाहिने कान के सिरे पर, और उनके दाहिने हाथ और दाहिने पांव के अंगूठों पर लगाना, और लोहू को वेदी पर चारों ओर छिड़क देना।
21. फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ ले कर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़क देना; तब वह अपने वस्त्रों समेत और उसके पुत्र भी अपने अपने वस्त्रों समेत पवित्र हो जाएंगे।
22. तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उस में से चरबी और मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की झिल्ली को, और चरबी समेत दोनों गुर्दों को, और दाहिने पुट्ठे को लेना,
23. और अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उस में से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपड़ी ले कर,
24. इन सब को हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराके यहोवा के आगे हिलाया जाए।
25. तब उन वस्तुओं को उनके हाथों से ले कर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिस से वह यहोवा के साम्हने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिये हवन होगा।
26. फिर हारून के संस्कार का जो मेंढ़ा होगा उसकी छाती को ले कर हिलाए जाने की भेंट के लिये यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा।
27. और हारून और उसके पुत्रों के संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उस में से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनों को पवित्र ठहराना।
28. और ये सदा की विधि की रीति पर इस्त्राएलियों की ओर से उसका और उसके पुत्रों का भाग ठहरे, क्योंकि ये उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्त्राएलियों की ओर से उनके मेलबलियों में से यहोवा के लिये उठाऐ जाने की भेंट होगी।
29. और हारून के जो पवित्र वस्त्र होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिस से उन्हीं को पहिने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए।
30. उसके पुत्रों के जो उसके स्थान पर याजक होगा, वह जब पवित्रस्थान में सेवा टहल करने को मिलाप वाले तम्बू में पहिले आए, तब उन वस्त्रों को सात दिन तक पहिने रहें।
31. फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे ले कर उसका मांस किसी पवित्र स्थान में पकाना;