1. झूठी बात न फैलाना। अन्यायी साक्षी हो कर दुष्ट का साथ न देना।
2. बुराई करने के लिये न तो बहुतों के पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरके मुकद्दमें में न्याय बिगाड़ने को साक्षी देना;
3. और कंगाल के मुकद्दमें में उसका भी पक्ष न करना॥
4. यदि तेरे शत्रु का बैल वा गदहा भटकता हुआ तुझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्य फेर ले आना।
5. फिर यदि तू अपने बैरी के गदहे को बोझ के मारे दबा हुआ देखे, तो चाहे उसको उसके स्वामी के लिये छुड़ाने के लिये तेरा मन न चाहे, तौभी अवश्य स्वामी का साथ देकर उसे छुड़ा लेना॥
6. तेरे लोगों में से जो दरिद्र हों उसके मुकद्दमे में न्याय न बिगाड़ना।
7. झूठे मुकद्दमे से दूर रहना, और निर्दोष और धर्मी को घात न करना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊंगा।