7. तब फिरौन के कर्मचारी उससे कहने लगे, वह जन कब तक हमारे लिये फन्दा बना रहेगा? उन मनुष्यों को जाने दे, कि वे अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करें; क्या तू अब तक नहीं जानता, कि सारा मिस्र नाश हो गया है?
8. तब मूसा और हारून फिरौन के पास फिर बुलवाए गए, और उसने उन से कहा, चले जाओ, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करो; परन्तु वे जो जाने वाले हैं, कौन कौन हैं?
9. मूसा ने कहा, हम तो बेटोंबेटियों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों समेत वरन बच्चों से बूढ़ों तक सब के सब जाएंगे, क्योंकि हमें यहोवा के लिये पर्ब्ब करना है।
10. उसने इस प्रकार उन से कहा, यहोवा तुम्हारे संग रहे जब कि मैं तुम्हें बच्चों समेत जाने देता हूं; देखो, तुम्हारे आगे को बुराई है।
11. नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तुम पुरूष ही जा कर यहोवा की उपासना करो, तुम यही तो चाहते थे। और वे फिरौन के सम्मुख से निकाल दिए गए॥
12. तब यहोवा ने मूसा से कहा, मिस्र देश के ऊपर अपना हाथ बढ़ा, कि टिड्डियां मिस्र देश पर चढ़ के भूमि का जितना अन्न आदि ओलों से बचा है सब को चट कर जाएं।
13. और मूसा ने अपनी लाट्ठी को मिस्र देश के ऊपर बढ़ाया, तब यहोवा ने दिन भर और रात भर देश पर पुरवाई बहाई; और जब भोर हुआ तब उस पुरवाई में टिड्डियां आईं।
14. और टिडि्डयों ने चढ़ के मिस्र देश के सारे स्थानों मे बसेरा किया, उनका दल बहुत भारी था, वरन न तो उनसे पहले ऐसी टिड्डियां आई थी, और न उनके पीछे ऐसी फिर आएंगी।
15. वे तो सारी धरती पर छा गई, यहां तक कि देश अन्धेरा हो गया, और उसका सारा अन्न आदि और वृक्षों के सब फल, निदान जो कुछ ओलों से बचा था, सब को उन्होंने चट कर लिया; यहां तक कि मिस्र देश भर में न तो किसी वृक्ष पर कुछ हरियाली रह गई और न खेत में अनाज रह गया।