5. और इस ने पतोर नगर को, जो महानद के तट पर बोर के पुत्र बिलाम के जातिभाइयों की भूमि थी, वहां बिलाम के पास दूत भेजे, कि वे यह कहकर उसे बुला लाएं, कि सुन एक दल मिस्र से निकल आया है, और भूमि उन से ढक गई है, और अब वे मेरे साम्हने ही आकर बस गए हैं।
6. इसलिये आ, और उन लोगों को मेरे निमित्त शाप दे, क्योंकि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं, तब सम्भव है कि हम उन पर जयवन्त हों, और हम सब इन को अपने देश से मारकर निकाल दें; क्योंकि यह तो मैं जानता हूं कि जिस को तू आशीर्वाद देता है वह धन्य होता है, और जिस को तू शाप देता है वह स्रापित होता है।
7. तब मोआबी और मिद्यानी पुरनिये भावी कहने की दक्षिणा ले कर चले, और बिलाम के पास पहुंचकर बालाक की बातें कह सुनाईं।
8. उसने उन से कहा, आज रात को यहां टिको, और जो बात यहोवा मुझ से कहेगा, उसी के अनुसार मैं तुम को उत्तर दूंगा; तब मोआब के हाकिम बिलाम के यहां ठहर गए।
9. तब परमेश्वर ने बिलाम के पास आकर पूछा, कि तेरे यहां ये पुरूष कौन हैं?
10. बिलाम ने परमेश्वर से कहा सिप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक ने मेरे पास यह कहला भेजा है,
11. कि सुन, जो दल मिस्र से निकल आया है उससे भूमि ढंप गई है; इसलिये आकर मेरे लिये उन्हें शाप दे; सम्भव है कि मैं उनसे लड़कर उन को बरबस निकाल सकूंगा।
12. परमेश्वर ने बिलाम से कहा, तू इनके संग मत जा; उन लोगों को शाप मत दे, क्योंकि वे आशीष के भागी हो चुके हैं।
13. भोर को बिलाम ने उठ कर बालाक के हाकिमों से कहा, तुम अपने देश को चले जाओ; क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साथ जाने की आज्ञा नहीं देता।
14. तब मोआबी हाकिम चले गए और बालाक के पास जा कर कहा, कि बिलाम ने हमारे साथ आने से नाह किया है।
15. इस पर बालाक ने फिर और हाकिम भेजे, जो पहिलों से प्रतिष्ठित और गिनती में भी अधिक थे।