13. तब यूसुफ ने उन दोनों को लेकर, अर्थात एप्रैम को अपने दाहिने हाथ से, कि वह इस्राएल के बाएं हाथ पड़े, और मनश्शे को अपने बाएं हाथ से, कि इस्राएल के दाहिने हाथ पड़े, उन्हें उसके पास ले गया।
14. तब इस्राएल ने अपना दहिना हाथ बढ़ाकर एप्रैम के सिर पर जो छोटा था, और अपना बायां हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया; उसने तो जान बूझकर ऐसा किया; नहीं तो जेठा मनश्शे ही था।
15. फिर उसने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक (अपने को जानकर ) चलते थे वही परमेश्वर मेरे जन्म से ले कर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है ;
16. और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशीष दे; और ये मेरे और मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक के कहलाएं; और पृथ्वी में बहुतायत से बढ़ें।
17. जब यूसुफ ने देखा, कि मेरे पिता ने अपना दहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तब यह बात उसको बुरी लगी: सो उसने अपने पिता का हाथ इस मनसा से पकड़ लिया, कि एप्रैम के सिर पर से उठा कर मनश्शे के सिर पर रख दे।
18. और यूसुफ ने अपने पिता से कहा, हे पिता, ऐसा नहीं: क्योंकि जेठा यही है; अपना दहिना हाथ इसके सिर पर रख।
19. उसके पिता ने कहा, नहीं, सुन, हे मेरे पुत्र, मैं इस बात को भली भांति जानता हूं: यद्यपि इस से भी मनुष्यों की एक मण्डली उत्पन्न होगी, और यह भी महान हो जाएगा, तौभी इसका छोटा भाई इस से अधिक महान हो जाएगा, और उसके वंश से बहुत सी जातियां निकलेंगी।
20. फिर उसने उसी दिन यह कहकर उन को आशीर्वाद दिया, कि इस्राएली लोग तेरा नाम ले ले कर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे, कि परमेश्वर तुझे एप्रैम और मनश्शे के समान बना दे: और उसने मनश्शे से पहिले एप्रैम का नाम लिया।