3. उन्हें कैद करा के जल्लादों के प्रधान के घर के उसी बन्दीगृह में, जहां युसुफ बन्धुआ था, डलवा दिया।
4. तब जल्लादों के प्रधान ने उनको यूसुफ के हाथ सौंपा, और वह उनकी सेवा टहल करने लगा: सो वे कुछ दिन तक बन्दीगृह में रहे।
5. और मिस्त्र के राजा का पिलानेहारा और पकानेहारा जो बन्दीगृह में बन्द थे, उन दोनों ने एक ही रात में, अपने होनेहार के अनुसार, स्वपन देखा।
6. बिहान को जब यूसुफ उनके पास अन्दर गया, तब उन पर दृष्टि की, तो क्या देखा, कि वे उदास हैं।
7. सो उसने फिरौन के उन हाकिमों से, जो उसके साथ उसके स्वामी के घर के बन्दीगृह में थे, पूछा, कि आज तुम्हारे मुँह क्यों उदास हैं?
8. उन्होंने उस से कहा, हम दोनो ने स्वपन देखा है, और उनके फल का बताने वाला कोई भी नहीं। यूसुफ ने उनसे कहा, क्या स्वपनों का फल कहना परमेश्वर का काम नहीं? मुझे अपना अपना स्वपन बताओ।
9. तब पिलानेहारों का प्रधान अपना स्वपन यूसुफ को यों बताने लगा: किमैंने स्वपन में देखा, कि मेरे सामने दाखलता है;
10. और उस दाखलता में तीन डालियां हैं: और उसमें मानो कलियां लगी हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छों में दाक लगकर पक गई:
11. और फिरौन का कटोरा मेरे हाथ में था : सो मैंने उन दाखों को लेकर फिरौन के कटोरे में निचोड़ा, और कटोरे को फिरौन के हाथ में दिया।
12. यूसुफ ने उस से कहा, इसका फल यह है; कि तीन डालियों का अर्थ तीन दिन है :
13. सो अब से तीन दिन के भीतर तेरा सर ऊँचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले की नाईं फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा
14. सो जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, अर इस घर से मुझे छुड़वा देना।