9. इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उसने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?
10. और ऐसा हुआ, कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उसने उसकी न मानी, कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे।
11. एक दिन क्या हुआ, कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था।
12. तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, मेरे साथ सो, पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।
13. यह देखकर, कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया,
14. उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा, देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी।
15. और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।
16. और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपने पास रखे रही।
17. तब उसने उससे इस प्रकार की बातें कहीं, कि वह इब्री दास जिस को तू हमारे पास ले आया है, सो मुझ से हंसी करने के लिये मेरे पास आया था।