9. और हमारे साथ ब्याह किया करो; अपनी बेटियां हम को दिया करो, और हमारी बेटियों को आप लिया करो।
10. और हमारे संग बसे रहो: और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इस में रह कर लेनदेन करो, और इसकी भूमि को अपने लिये ले लो।
11. और शकेम ने भी दीना के पिता और भाइयों से कहा, यदि मुझ पर तुम लोगों की अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझ से कहो, सो मैं दूंगा।
12. तुम मुझ से कितना ही मूल्य वा बदला क्यों न मांगो, तौभी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूंगा: परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिये मुझे दो।
13. तब यह सोच कर, कि शकेम ने हमारी बहिन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रों ने शकेम और उसके पिता हमोर को छल के साथ यह उत्तर दिया,
14. कि हम ऐसा काम नहीं कर सकते, कि किसी खतना रहित पुरूष को अपनी बहिन दें; क्योंकि इस से हमारी नामधराई होगी:
15. इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे, कि हमारी नाईं तुम में से हर एक पुरूष का खतना किया जाए।
16. तब हम अपनी बेटियां तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियां ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनों एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएंगे।
17. पर यदि तुम हमारी बात न मान कर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपनी लड़की को लेके यहां से चले जाएंगे।
18. उनकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए।
19. और वह जवान, जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता था, इस काम को करने में उसने विलम्ब न किया। वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था।