23. सो उसने अपने भाइयों को साथ ले कर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा।
24. तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।
25. और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था: और लाबान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया।
26. तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए?
27. तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता?
28. तू ने तो मुझे अपने बेटे बेटियों को चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है।
29. तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।
30. भला अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी हो कर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है?
31. याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया था: कि कहीं तू अपनी बेटियों को मुझ से छीन न ले।
32. जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई-बन्धुओं के साम्हने पहिचान कर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है।
33. यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ: और दोनों दासियों के तम्बुओं मे गया; और कुछ न मिला। तब लिआ: के तम्बू में से निकल कर राहेल के तम्बू में गया।
34. राहेल तो गृहदेवताओं को ऊंट की काठी में रखके उन पर बैठी थी। सो लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया।
35. राहेल ने अपने पिता से कहा, हे मेरे प्रभु; इस से अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे साम्हने नहीं उठी; क्योंकि मैं स्त्रीधर्म से हूं। सो उसके ढूंढ़ ढांढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले।
36. तब याकूब क्रोधित हो कर लाबान से झगड़ने लगा, और कहा, मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तू ने इतना क्रोधित हो कर मेरा पीछा किया है?