37. और मेरे स्वामी ने मुझे यह शपथ खिलाई, कि मैं उसके पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से जिन के देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊंगा।
38. मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगों के पास जा कर उसके पुत्र के लिये एक स्त्री ले आऊंगा।
39. तब मैं ने अपने स्वामी से कहा, कदाचित वह स्त्री मेरे पीछे न आए।
40. तब उसने मुझ से कहा, यहोवा, जिसके साम्हने मैं चलता आया हूं, वह तेरे संग अपने दूत को भेज कर तेरी यात्रा को सफल करेगा; सो तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिये एक स्त्री ले आ सकेगा।
41. तू तब ही मेरी इस शपथ से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगों के पास पहुंचेगा; अर्थात यदि वे मुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी शपथ से छूटेगा।
42. सो मैं आज उस कुएं के निकट आकर कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सफल करता हो:
43. तो देख मैं जल के इस कुएं के निकट खड़ा हूं; सो ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिये निकल आए, और मैं उससे कहूं, अपने घड़े में से मुझे थोड़ा पानी पिला;
44. और वह मुझ से कहे, पी ले और मैं तेरे ऊंटो के पीने के लिये भी पानी भर दूंगी: वह वही स्त्री हो जिस को तू ने मेरे स्वामी के पुत्र के लिये ठहराया हो।
45. मैं मन ही मन यह कह ही रहा था, कि देख रिबका कन्धे पर घड़ा लिये हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतर के भरने लगी: और मैं ने उससे कहा, मुझे पिला दे।
46. और उसने फुर्ती से अपने घड़े को कन्धे पर से उतार के कहा, ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटों को भी पिलाऊंगी: सो मैं ने पी लिया, और उसने ऊंटों को भी पिला दिया।
47. तब मैं ने उससे पूछा, कि तू किस की बेटी है? और उसने कहा, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं: तब मैं ने उसकी नाक में वह नथ, और उसके हाथों में वे कंगन पहिना दिए।
48. फिर मैं ने सिर झुका कर यहोवा को दण्डवत किया, और अपने स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उसने मुझे ठीक मार्ग से पहुंचाया कि मैं अपने स्वामी के पुत्र के लिये उसकी भतीजी को ले जाऊं।