10. तब उन पाहुनों ने हाथ बढ़ाकर, लूत को अपने पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया।
11. और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरूषों को जो घर के द्वार पर थे अन्धा कर दिया, सो वे द्वार को टटोलते टटोलते थक गए।
12. फिर उन पाहुनों ने लूत से पूछा, यहां तेरे और कौन कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियां, वा नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभों को ले कर इस स्थान से निकल जा।
13. क्योंकि हम यह स्थान नाश करने पर हैं, इसलिये कि उसकी चिल्लाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है; और यहोवा ने हमें इसका सत्यनाश करने के लिये भेज दिया है।
14. तब लूत ने निकल कर अपने दामादों को, जिनके साथ उसकी बेटियों की सगाई हो गई थी, समझा के कहा, उठो, इस स्थान से निकल चलो: क्योंकि यहोवा इस नगर को नाश किया चाहता है। पर वह अपने दामादों की दृष्टि में ठट्ठा करने हारा सा जान पड़ा।
15. जब पौ फटने लगी, तब दूतों ने लूत से फुर्ती कराई और कहा, कि उठ, अपनी पत्नी और दोनो बेटियों को जो यहां हैं ले जा: नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा।