18. इब्राहीम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियां उसके द्वारा आशीष पाएंगी।
19. क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिये कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करें।
20. फिर यहोवा ने कहा सदोम और अमोरा की चिल्लाहट बढ़ गई है, और उनका पाप बहुत भारी हो गया है;
21. इसलिये मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा।
22. सो वे पुरूष वहां से मुड़ के सदोम की ओर जाने लगे: पर इब्राहीम यहोवा के आगे खड़ा रह गया।
23. तब इब्राहीम उसके समीप जा कर कहने लगा, क्या सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा?
24. कदाचित उस नगर में पचास धर्मी हों: तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उस में हो न छोड़ेगा?
25. इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे: क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?
26. यहोवा ने कहा यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्थान को छोडूंगा।
27. फिर इब्राहीम ने कहा, हे प्रभु, सुन मैं तो मिट्टी और राख हूं; तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूं।
28. कदाचित उन पचास धर्मियों में पांच घट जाए: तो क्या तू पांच ही के घटने के कारण उस सारे नगर का नाश करेगा? उसने कहा, यदि मुझे उस में पैंतालीस भी मिलें, तौभी उसका नाश न करूंगा।
29. फिर उसने उससे यह भी कहा, कदाचित वहां चालीस मिलें। उसने कहा, तो मैं चालीस के कारण भी ऐसा ने करूंगा।