21. इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्टि की: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।
22. और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, कि फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।
23. तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन हो गया।
24. फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात घरेलू पशु, और रेंगने वाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया।
25. सो परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन पशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगने वाले जन्तुओं को बनाया: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।