3. कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है।
4. विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।
5. तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।
6. इसलिये हम बेधड़क होकर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है॥
7. जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो।
8. यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है।
9. नाना प्रकार के और ऊपक्की उपदेशों से न भरमाए जाओ, क्योंकि मन का अनुग्रह से दृढ़ रहना भला है, न कि उन खाने की वस्तुओं से जिन से काम रखने वालों को कुछ लाभ न हुआ।
10. हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिकार उन लोगों को नहीं, जो तम्बू की सेवा करते हैं।
11. क्योंकि जिन पशुओं का लोहू महायाजक पाप-बलि के लिये पवित्र स्थान में ले जाता है, उन की देह छावनी के बाहर जलाई जाती है।
12. इसी कारण, यीशु ने भी लोगों को अपने ही लोहू के द्वारा पवित्र करने के लिये फाटक के बाहर दुख उठाया।