6. कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे; क्योंकि इन ही कामों के कारण परमेश्वर का क्रोध आज्ञा ने मानने वालों पर भड़कता है।
7. इसलिये तुम उन के सहभागी न हो।
8. क्योंकि तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, सो ज्योति की सन्तान की नाईं चलो।
9. (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धामिर्कता, और सत्य है)।
10. और यह परखो, कि प्रभु को क्या भाता है
11. और अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन उन पर उलाहना दो।