21. मैं तुम्हारे पर्वों से बैर रखता, और उन्हें निकम्मा जानता हूं, और तुम्हारी महासभाओं से मैं प्रसन्न नहीं।
22. चाहे तुम मेरे लिये होमबलि और अन्नबलि चढ़ाओ, तौभी मैं प्रसन्न न हूंगा, और तुम्हारे पाले हुए पशुओं के मेलबलियों की ओर न ताकूंगा।
23. अपने गीतों का कोलाहल मुझ से दूर करो; तुम्हारी सारंगियों का सुर मैं न सुनूंगा।
24. परन्तु न्याय को नदी की नाईं, और धर्म महानद की नाईं बहने दो।
25. हे इस्राएल के घराने, तुम जंगल में चालीस वर्ष तक पशुबलि और अन्नबलि क्या मुझी को चढ़ाते रहे?