17. जब पृथ्वी पर दक्खिनी हवा ही के कारण से सन्नाटा रहता है तब तेरे वस्त्र क्यों गर्म हो जाते हैं?
18. फिर क्या तू उसके साथ आकाशमण्डल को तान सकता है, जो ढाले हुए दर्पण के तुल्य दृढ़ है?
19. तू हमें यह सिखा कि उस से क्या कहना चाहिये? क्योंकि हम अन्धियारे के कारण अपना व्याख्यान ठीक नहीं रच सकते।