19. क्या तेरा रोना वा तेरा बल तुझे दु:ख से छुटकारा देगा?
20. उस रात की अभिलाषा न कर, जिस में देश देश के लोग अपने अपने स्थान से मिटाए जाते हैं।
21. चौकस रह, अनर्थ काम की ओर मत फिर, तू ने तो दु:ख से अधिक इसी को चुन लिया है।
22. देख, ईश्वर अपने सामर्ध्य से बड़े बड़े काम करता है, उसके समान शिक्षक कौन है?
23. किस ने उसके चलने का मार्ग ठहराया है? और कौन उस से कह सकता है, कि तू ने अनुचित काम किया है?
24. उसके कामों की महिमा और प्रशंसा करने को स्मरण रख, जिसकी प्रशंसा का गीत मनुष्य गाते चले आए हैं।
25. सब मनुष्य उसको ध्यान से देखते आए हैं, और मनुष्य उसे दूर दूर से देखता है।
26. देख, ईश्वर महान और हमारे ज्ञान से कहीं परे है, और उसके वर्ष की गिनती अनन्त है।
27. क्योंकि वह तो जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है वे कुहरे से मेंह हो कर टपकती हैं,