4. वे दरिद्र लोगों को मार्ग से हटा देते, और देश के दीनों को इकट्ठे छिपना पड़ता है।
5. देखो, वे जंगली गदहों की नाईं अपने काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूंढ़ने को निकल जाते हैं; उनके लड़के-बालों का भोजन उन को जंगल से मिलता है।
6. उन को खेत में चारा काटना, और दुष्टों की बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है।
7. रात को उन्हें बिना वस्त्र नंगे पड़े रहना और जाड़े के समय बिना ओढ़े पड़े रहना पड़ता है।
8. वे पहाड़ों पर की झडिय़ों से भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं।
9. कुछ लोग अनाथ बालक को माँ की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं।
10. जिस से वे बिना वस्त्र नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियां ढोते हैं।
11. वे उनकी भीतों के भीतर तेल पेरते और उनके कुणडों में दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं।
12. वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दोहाई देता है; परन्तु ईश्वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता।
13. फिर कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके मार्गों को नहीं पहचानते, और न उसके मार्गों में बने रहते हैं।