21. हे मेरे मित्रो! मुझ पर दया करो, दया, क्योंकि ईश्वर ने मुझे मारा है।
22. तुम ईश्वर की नाईं क्यों मेरे पीछे पड़े हो? और मेरे मांस से क्यों तृप्त नहीं हुए?
23. भला होता, कि मेरी बातें लिखी जातीं; भला होता, कि वे पुस्तक में लिखी जातीं,
24. और लोहे की टांकी और शीशे से वे सदा के लिये चट्टान पर खोदी जातीं।
25. मुझे तो निश्चय है, कि मेरा छुड़ाने वाला जीवित है, और वह अन्त में पृथ्वी पर खड़ा होगा।
26. और अपनी खाल के इस प्रकार नाश हो जाने के बाद भी, मैं शरीर में हो कर ईश्वर का दर्शन पाऊंगा।