17. चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी बिनती तुम्हारे कान में पड़े।
18. देखो, मैं ने अपने बहस की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निर्दोष ठहरूंगा।
19. कौन है जो मुझ से मुकद्दमा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप हो कर प्राण छोडूंगा।
20. दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूंगा:
21. अपनी ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर।
22. तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूंगा; नहीं तो मैं प्रश्न करूंगा, और तू मुझे उत्तर दे।
23. मुझ से कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे।
24. तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है?
25. क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कंपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?
26. तू मेरे लिये कठिन दु:खों की आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है।