4. मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन लिया करता था; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धमीं और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है।
5. दु:खी लोग तो सुखियों की समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है।
6. डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है।
7. पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बता देंगे।
8. पृथ्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिक्षा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी।
9. कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है।
10. उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है।