14. देखो, जिस को वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता।
15. देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृथ्वी उलट जाती है।
16. उस में सामर्थ्य और खरी बुद्धि पाई जाती है; धोख देने वाला और धोखा खाने वाला दोनों उसी के हैं।
17. वह मंत्रियों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता, और न्यायियों को मूर्ख बना देता है।
18. वह राजाओं का अधिकार तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है।
19. वह याजकों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता और सामर्थियों को उलट देता है।
20. वह विश्वासयोग्य पुरुषों से बोलने की शक्ति और पुरनियों से विवेक की शक्ति हर लेता है।
21. वह हाकिमों को अपमान से लादता, और बलवानों के हाथ ढीले कर देता है।
22. वह अन्धियारे की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है।
23. वह जातियों को बढ़ाता, और उन को नाश करता है; वह उन को फैलाता, और बन्धुआई में ले जाता है।
24. वह पृथ्वी के मुख्य लोगों की बुद्धि उड़ा देता, और उन को निर्जन स्थानों में जहां रास्ता नहीं है, भटकाता है।