4. क्या तेरी देहधारियों की सी आंखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है?
5. क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरुष के समयों के तुल्य हैं,
6. कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है?
7. तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ, और तेरे हाथ से कोई छुड़ाने वाला नहीं!
8. तू ने अपने हाथों से मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तौभी मुझे नाश किए डालता है।
9. स्मरण कर, कि तू ने मुझ को गून्धी हुई मिट्टी की नाईं बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा?
10. क्या तू ने मुझे दूध की नाईं उंडेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया?