5. राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या चाहिये? उसने कहा, सचमुच मेरा पति मर गया, और मैं विधवा हो गई।
6. और तेरी दासी के दो बेटे थे, और उन दोनों ने मैदान में मार पीट की; और उन को छुड़ाने वाला कोई न था, इसलिए एक ने दूसरे को ऐसा मारा कि वह मर गया।
7. और यह सुन सब कुल के लोग तेरी दासी के विरुद्ध उठ कर यह कहते हैं, कि जिसने अपने भाई को घात किया उसको हमें सौंप दे, कि उसके मारे हुए भाई के प्राण के पलटे में उसको प्राण दण्ड दें; और वारिस को भी नाश करें। इस तरह वे मेरे अंगारे को जो बच गया है बुझाएंगे, और मेरे पति का ताम और सन्तान धरती पर से मिटा डालेंगे।
8. राजा ने स्त्री से कहा, अपने घर जा, और मैं तेरे विषय आज्ञा दूंगा।
9. तकोइन ने राजा से कहा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, दोष मुझी को और मेरे पिता के घराने ही को लगे; और राजा अपनी गद्दी समेत निदॉष ठहरे।
10. राजा ने कहा, जो कोई तुझ से कुछ बोले उसको मेरे पास ला, तब वह फिर तुझे छूने न पाएगा।
11. उसने कहा, राजा अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण करे, कि खून का पलटा लेने वाला और नाश करने न पाए, और मेरे बेटे का नाश न होने पाए। उसने कहा, यहोवा के जीवन की शपथ, तेरे बेटे का एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा।
12. स्त्री बोली, तेरी दासी अपने प्रभु राजा से एक बात कहने पाए।
13. उसने कहा, कहे जा। स्त्री कहने लगी, फिर तू ने परमेश्वर की प्रजा की हानि के लिये ऐसी ही युक्ति क्यों की है? राजा ने जो यह वचन कहा है, इस से वह दोषी सा ठहरता है, क्योंकि राजा अपने निकाले हुए को लौटा नहीं लाता।
14. हम को तो मरना ही है, और भूमि पर गिरे हुए जल के समान ठहरेंगे, जो फिर उठाया नहीं जाता; तौभी परमेश्वर प्राण नहीं लेता, वरन ऐसी युक्ति करता है कि निकाला हुआ उसके पास से निकाला हुआ न रहे।
15. और अब मैं जो अपने प्रभु राजा से यह बात कहने को आई हूं, इसका कारण यह है, कि लोगों ने मुझे डरा दिया था; इसलिये तेरी दासी ने सोचा, कि मैं राजा से बोलूंगी, कदाचित राजा अपनी दासी की बिनती को पूरी करे।