25. परन्तु सातवें महीने में नतन्याह का पुत्र इश्माएल, जो एलीशामा का पोता और राजवंश का था, उसने दस जन संग ले गदल्याह के पास जा कर उसे ऐसा मारा कि वह मर गया, और जो यहूदी और कसदी उसके संग मिस्पा में रहते थे, उन को भी मार डाला।
26. तब क्या छोटे क्या बड़े सारी प्रजा के लोग और दलों के प्रधान कसदियों के डर के मारे उठ कर मिस्र में जा कर रहने लगे।
27. फिर यहूदा के राजा यहोयाकीन की बन्धुआई के तैंतीसवें वर्ष में अर्थात जिस वर्ष में बाबेल का राजा एवील्मरोदक राजगद्दी पर विराजमान हुआ, उसी के बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन को उसने यहूदा के राजा यहोयाकीन को बन्दीगृह से निकाल कर बड़ा पद दिया।
28. और उस से मधुर मधुर वचन कह कर जो राजा उसके संग बाबेल में बन्धुए थे उनके सिंहासनों से उस के सिंहासन को अधिक ऊंचा किया,
29. और उसके बन्दीगृह के वस्त्र बदल दिए और उसने जीवन भर नित्य राजा के सम्मुख भोजन किया।
30. और प्रतिदिन के खर्च के लिये राजा के यहां से नित्य का खर्च ठहराया गया जो उसके जीवन भर लगातार उसे मिलता रहा।