11. और जो घोड़े यहूदा के राजाओं ने सूर्य को अर्पण कर के, यहोवा के भवन के द्वार पर नतन्मेलेक नाम खोजे की बाहर की कोठरी में रखे थे, उन को उसने दूर किया, और सूर्य के रथों को आग में फूंक दिया।
12. और आहाज की अटारी की छत पर जो वेदियां यहूदा के राजाओं की बनाईं हुई थीं, और जो वेदियां मनश्शे ने यहोवा के भवन के दोनों आंगनों में बनाईं थीं, उन को राजा ने ढाकर पीस डाला और उनकी बुकनी किद्रोन नाले में फेंक दी।
13. और जो ऊंचे स्थान इस्राएल के राजा सुलैमान ने यरूशलेम की पूर्व ओर और विकारी नाम पहाड़ी की दक्खिन अलंग, अश्तोरेत नाम सीदोनियों की घिनौनी देवी, और कमोश नाम मोआबियों के घिनौने देवता, और मिल्कोम नाम अम्मोनियों के घिनौने देवता के लिये बनवाए थे, उन को राजा ने अशुद्ध कर दिया।
14. और उसने लाठों को तोड़ दिया और अशेरों को काट डाला, और उनके स्थान मनुष्यों की हड्डियों से भर दिए।
15. फिर बेतेल में जो वेदी थी, और जो ऊंचा स्थान नबात के पुत्र यारोबाम ने बनाया था, जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उस वेदी और उस ऊंचे स्थान को उसने ढा दिया, और ऊंचे स्थान को फूंक कर बुकनी कर दिया और अशेरा को फूंक दिया।
16. और योशिय्याह ने फिर कर वहां के पहाड़ की कबरों को देखा, और लोगों को भेज कर उन कबरों से हड्डियां निकलवा दीं और वेदी पर जलवाकर उसको अशुद्ध किया। यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो परमेश्वर के उस भक्त ने पुकार कर कहा था जिसने इन्हीं बातों की चर्चा की थी।
17. तब उसने पूछा, जो खम्भा मुझे दिखाई पड़ता है, वह क्या है? तब नगर के लोगों ने उस से कहा, वह परमेश्वर के उस भक्त जन की कबर है, जिसने यहूदा से आकर इसी काम की चर्चा पुकार कर की जो तू ने बेतेल की वेदी से किया है।
18. तब उसने कहा, उसको छोड़ दो; उसकी हड्डियों को कोई न हटाए। तब उन्होंने उसकी हड्डियां उस नबी की हड्डियों के संग जो शोमरोन से आया था, रहने दी।
19. फिर ऊंचे स्थान के जितने भवन शोमरोन के नगरों में थे, जिन को इस्राएल के राजाओं ने बना कर यहोवा को रिस दिलाई थी, उन सभों को योशिय्याह ने गिरा दिया; और जैसा जैसा उसने बेतेल में किया था, वैसा वैसा उन से भी किया।
20. और उन ऊंचे स्थानों के जितने याजक वहां थे उन सभों को उसने उन्ही वेदियों पर बलि किया और उन पर मनुष्यों की हड्डियां जला कर यरूशलेम को लौट गया।
21. और राजा ने सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी, कि इस वाचा की पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा के लिये फसह का पर्व मानो।
22. निश्चय ऐसा फसह न तो न्यायियों के दिनों में माना गया था जो इस्राएल का न्याय करते थे, और न इस्राएल वा यहूदा के राजाओं के दिनों में माना गया था।
23. राजा योशिय्याह के अठारहवें वर्ष में यहोवा के लिये यरूशलेम में यह फसह माना गया।
24. फिर ओझे, भूतसिद्धि वाले, गृहदेवता, मूरतें और जितनी घिनौनी वस्तुएं यहूदा देश और यरूशलेम में जहां कहीं दिखाई पड़ीं, उन सभों को योशिय्याह ने उस मनसा से नाश किया, कि व्यवस्था की जो बातें उस पुस्तक में लिखी थीं जो हिलकिय्याह याजक को यहोवा के भवन में मिली थी, उन को वह पूरी करे।
25. और उसके तुल्य न तो उस से पहिले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा, जो मूसा की पूरी व्यवस्था के अनुसार अपने पूर्ण मन और मूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से यहोवा की ओर फिरा हो।
26. तौभी यहोवा का भड़का हुआ बड़ा कोप शान्त न हुआ, जो इस कारण से यहूदा पर भड़का था, कि मनश्शे ने यहोवा को क्रोध पर क्रोध दिलाया था।
27. और यहोवा ने कहा था जेसे मैं ने इस्राएल को अपने साम्हने से दूर किया, वैसे ही यहूदा को भी दूर करूंगा; और इस यरूशलेम नगर से जिसे मैं ने चुना और इस भवन से जिसके विषय मैं ने कहा, कि यह मेरे नाम का निवास होगा, मैं हाथ उठाऊंगा।
28. योशिय्याह के और सब काम जो उसने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?