13. हमात का राजा, और अर्पाद का राजा, और समवैंम नगर का राजा, और हेना और इव्वा के राजा ये सब कहां रहे? इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतों के हाथ से ले कर पढ़ा।
14. तब यहोवा के भवन में जा कर उसको यहोवा के साम्हने फैला दिया।
15. और यहोवा से यह प्रार्थना की, कि हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! हे करूबों पर विराजने वाले ! पृथ्वी के सब राज्यों के ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है। आकाश और पृथ्वी को तू ही ने बनाया है।
16. हे यहोवा! कान लगाकर सुन, हे यहोवा आंख खोल कर देख, और सन्हेरीब के वचनों को सुन ले, जो उसने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को कहला भेजे हैं।
17. हे यहोवा, सच तो है, कि अश्शूर के राजाओं ने जातियों को और उनके देशों को उजाड़ा है।
18. और उनके देवताओं को आग में झोंका है, क्योंकि वे ईश्वर न थे; वे मनुष्यों के बनाए हुए काठ और पत्थर ही के थे; इस कारण वे उन को नाश कर सके।
19. इसलिये अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू हमें उसके हाथ से बचा, कि पृथ्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।
20. तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि जो प्रार्थना तू ने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय मुझ से की, उसे मैं ने सुना है।
21. उसके विषय में यहोवा ने यह वचन कहा है, कि सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती और तुझे ठट्ठों में उड़ाती है, यरूशलेम की पुत्री, तुझ पर सिर हिलाती है।
22. तू ने जो नामधराई और निन्दा की है, वह किसकी की है? और तू ने जो बड़ा बोल बोला और घमण्ड किया है वह किसके विरुद्ध किया है? इस्राएल के पवित्र के विरुद्ध तू ने किया है!
23. अपने दूतों के द्वारा तू ने प्रभु की निन्दा कर के कहा है, कि बहुत से रथ ले कर मैं पर्वतों की चोटियों पर, वरन लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊंचे ऊंचे देवदारुओं और अच्छे अच्छे सनोवरों को काट डालूंगा; और उस में जो सब से ऊंचा टिकने का स्थान होगा उस में और उसके वन की फलदाई बारियों में प्रवेश करूंगा।
24. मैं ने तो खुदवा कर परदेश का पानी पिया; और मिस्र की नहरों में पांव धरते ही उन्हें सुखा डालूंगा।
25. क्या तू ने नहीं सुना, कि प्राचीनकाल से मैं ने यही ठहराया? और अगले दिनों से इसकी तैयारी की थी, उन्हें अब मैं ने पूरा भी किया है, कि तू गढ़ वाले नगरों को खण्डहर ही खण्डहर कर दे,
26. इसी कारण उनके रहने वालों का बल घट गया; वे विस्मित और लज्जित हुए; वे मैदान के छोटे छोटे पेड़ों और हरी घास और छत पर की घास, और ऐसे अनाज के समान हो गए, जो बढ़ने से पहिले सूख जाता है।
27. मैं तो तेरा बैठा रहना, और कूच करना, और लौट आना जानता हूँ, और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है।
28. इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानों में पड़ी हैं; मैं तेरी नाक में अपनी नकेल डाल कर और तेरे मुंह में अपना लगाम लगा कर, जिस मार्ग से तू आया है, उसी से तुझे लोटा दूंगा।