28. तब रबशाके ने खड़े हो, यहूदी भाषा में ऊंचे शब्द से कहा, महाराजाधिराज अर्थात अश्शूर के राजा की बात सुनो।
29. राजा यों कहता है, कि हिजकिय्याह तुम को भुलाने न पाए, क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से बचा न सकेगा।
30. और वह तुम से यह कह कर यहोवा पर भरोसा कराने न पाए, कि यहोवा निश्चय हम को बचाएगा और यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा।
31. हिजकिय्याह की मत सुनो। अश्शूर का राजा कहता है कि भेंट भेज कर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ, और प्रत्येक अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष के फल खाता और अपने अपने कुण्ड का पानी पीता रहे।
32. तब मैं आकर तुम को ऐसे देश में ले जाऊंगा, जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नये दाखमधु का देश, रोटी और दाख्बारियों का देश, जलपाइयों और मधु का देश है, वहां तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे; तो जब हिजकिय्याह यह कह कर तुम को बहकाए, कि यहोवा हम को बचाएगा, तब उसकी न सुनना।
33. क्या और जातियों के देवताओं ने अपने अपने देश को अश्शूर के राजा के हाथ से कभी बचाया है?
34. हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपवैंम, हेना और इव्वा के देवता कहां रहे? क्या उन्होंने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया है,
35. देश देश के सब देवताओं में से ऐसा कौन है, जिसने अपने देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा।
36. परन्तु सब लोग चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा थी, कि उसको उत्तर न देना।
37. तब हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर था, और शेब्ना जो मन्त्री था, और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखने वाला था, अपने वस्त्र फाड़े हुए, हिजकिय्याह के पास जा कर रबशाके की बातें कह सुनाईं।