3. उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था तौभी अपने मूल पुरुष दाऊद की नाईं न किया; उसने ठीक अपने पिता योआश के से काम किए।
4. उसके दिनों में ऊंचे स्थान गिराए न गए; लोग तब भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे।
5. जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला, जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था।
6. परन्तु उन खूनियों के लड़के-बालों को उसने न मार डाला, क्योंकि यहोवा की यह आज्ञा मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और पिता के कारण पुत्र न मार डाला जाए: जिसने पाप किया हो, वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।
7. उसी अमस्याह ने लोन की तराई में दस हजार एदोमी पुरुष मार डाले, और सेला नगर से युद्ध कर के उसे ले लिया, और उसका नाम योक्तेल रखा, और वह नाम आज तक चलता है।
8. तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा योआश के पास जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था दूतों से कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें।
9. इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदारु के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन में का एक बनपशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला।
10. तू ने एदोमियों को जीता तो है इसलिये तू फूल उठा है। उसी पर बड़ाई मारता हुआ घर रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ उठाता है, जिस से तू क्या वरन यहूदा भी नीचा खाएगा?
11. परन्तु अमस्याह ने न माना। तब इस्राएल के राजा योआश ने चढाई की, और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामहना किया।
12. और यहूदा इस्राएल से हार गया, और एक एक अपने अपने डेरे को भागा।
13. तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को जो अहज्याह का पोता, और योआश का पुत्र था, बेतशेमेश में पकड़ लिया, और यरूशलेम को गया, और यरूशलेम की शहरपनाह में से एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए।