12. सो ऐसी आशा रखकर हम हियाव के साथ बोलते हैं।
13. और मूसा की नाईं नहीं, जिस ने अपने मुंह पर परदा डाला था ताकि इस्त्राएली उस घटने वाली वस्तु के अन्त को न देखें।
14. परन्तु वे मतिमन्द हो गए, क्योंकि आज तक पुराने नियम के पढ़ते समय उन के हृदयों पर वही परदा पड़ा रहता है; पर वह मसीह में उठ जाता है।
15. और आज तक जब कभी मूसा की पुस्तक पढ़ी जाती है, तो उन के हृदय पर परदा पड़ा रहता है।
16. परन्तु जब कभी उन का हृदय प्रभु की ओर फिरेगा, तब वह परदा उठ जाएगा।
17. प्रभु तो आत्मा है: और जहां कहीं प्रभु का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।
18. परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं॥