4. तब सब प्रजा समेत राजा ने यहोवा को बलि चढ़ाई।
5. और राजा सुलैमान ने बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ -बकरियां चढ़ाई। यों पूरी प्रजा समेत राजा ने यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
6. और याजक अपना अपना कार्य करने को खड़े रहे, और लेवीय भी यहोवा के गीत के गाने के लिये बाजे लिये हुए खड़े थे, जिन्हें दाऊद राजा ने यहोवा की सदा की करुणा के कारण उसका धन्यवाद करने को बनाकर उनके द्वारा स्तुति कराई थी; और इनके साम्हने याजक लोग तुरहियां बजाते रहे; और सब इस्राएली खड़े रहे।
7. फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के साम्हने आंगन के बीच एक स्थान पवित्र कर के होमबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई, क्योंकि सुलैमान की बनाईं हुई पीतल की वेदी होमबलि और अन्नबलि और चर्बी के लिये छोटी थी।
8. उसी समय सुलैमान ने और उसके संग हमात की घाटी से ले कर मिस्र के नाले तक के सारे इस्राएल की एक बहुत बड़ी सभा ने सात दिन तक पर्व को माना।
9. और आठवें दिन को उन्होंने महासभा की, उन्होंने वेदी की प्रतिष्ठा सात दिन की; और पर्वों को भी सात दिन माना।
10. निदान सातवें महीने के तेइसवें दिन को उसने प्रजा के लोगों को विदा किया, कि वे अपने अपने डेरे को जाएं, और वे उस भलाई के कारण जो यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और अपनी प्रजा इस्राएल पर की थी आनन्दित थे।
11. यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उसने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ।
12. तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन दे कर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और इस स्थान को यज्ञ के भवन के लिये अपनाया है।
13. यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियों को देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपनी प्रजा में मरी फैलाऊं,