14. तब उन हथियार बन्धों ने बन्धुओं और लूट को हाकिमों और सारी सभा के साम्हने छोड़ दिया।
15. तब जिन पुरुषों के नाम ऊपर लिखे हैं, उन्होंने उठ कर बन्धुओं को ले लिया, और लूट में से सब नंगे लोगों को कपड़े, और जूतियां पहिनाईं; और खाना खिलाया, और पानी पिलाया, और तेल मला; और तब निर्बल लोगों को गदहों पर चढ़ा कर, यरीहो को जो खजूर का नगर कहलाता है, उनके भाइयों के पास पहुंचा दिया। तब वे शोमरोन को लौट आए।
16. उस समय राजा आहाज ने अश्शूर के राजाओं के पास दूत भेज कर सहायता मांगी।
17. क्योंकि एदोमियों ने यहूदा में आकर उसको मारा, और बन्धुओं को ले गए थे।
18. और पलिश्तयों ने नीचे के देश और यहूदा के दक्खिन देश के नगरों पर चढ़ाई कर के, बेतशेमेश, अय्यालोन और गदेरोत को, और अपने अपने गांवों समेत सोको, तिम्ना, और गिमजो को ले लिया; और उन में रहने लगे थे।
19. यों यहोवा ने इस्राएल के राजा आहाज के कारण यहूदा को दबा दिया, क्योंकि वह निरंकुश हो कर चला, और यहोवा से बड़ा विश्वासघात किया।
20. तब अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर उसके विरुद्ध आया, और उसको कष्ट दिया; दृढ़ नहीं किया।
21. आहाज ने तो यहोवा के भवन और राजभवन और हाकिमों के घरों में से धन निकाल कर अश्शूर के राजा को दिया, परन्तु इससे उसकी कुछ सहायता न हुई।
22. और क्लेश के समय राजा आहाज ने यहोवा से और भी विश्वासघात किया।
23. और उसने दमिश्क के देवताओं के लिये जिन्होंने उसको मारा था, बलि चढ़ाया; क्योंकि उसने यह सोचा, कि आरामी राजाओं के देवताओं ने उनकी सहायता की, तो मैं उनके लिये बलि चढ़ाऊंगा कि वे मेरी सहायता करें। परन्तु वे उसके और सारे इस्राएल के पतन का कारण हुए।
24. फिर आहाज ने परमेश्वर के भवन के पात्र बटोर कर तुड़वा डाले, और यहोवा के भवन के द्वारों को बन्द कर दिया; और यरूशलेम के सब कोनों में वेदियां बनाईं।
25. और यहूदा के एक एक नगर में उसने पराये देवताओं को धूप जलाने के लिये ऊंचे स्थान बनाए, और अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को रिस दिलाई।