10. तब अमस्याह ने उन्हें अर्थात उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया था, अलग कर दिया, कि वे अपने स्थान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित हो कर अपने स्थान को लौट गए।
11. परन्तु अमस्याह हियाव बान्ध कर अपने लोगों को ले चला, और लोन की तराई में जा कर, दस हजार सेईरियों को मार डाला।
12. और यहूदियों ने दस हजार को बन्धुआ कर के चट्टान की चोटी पर ले गए, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए।
13. परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साथ युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों पर टूट पड़े, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली।
14. जब अमस्याह एदोनियों का संहार कर के लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता कर के खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दण्डवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा।
15. तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उसने उसके पास एक नबी भेजा जिसने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है?
16. वह उस से कह ही रहा था कि उसने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कह कर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी।