8. और राजा ने एक सन्दूक बनाने की आज्ञा दी और वह यहोवा के भवन के फाटक के पास बाहर रखा गया।
9. तब यहूदा और यरूशलेम में यह प्रचार किया गया कि जिस चन्दे का नियम परमेश्वर के दास मूसा ने जंगल में इस्राएल में चलाया था, उसके रुपए यहोवा के निमित्त ले आओ।
10. तो सब हाकिम और प्रजा के सब लोग आनन्दित हो रुपए लाकर जब तक चन्दा पूरा न हुआ तब तक सन्दूक में डालते गए।
11. और जब जब वह सन्दूक लेवियों के हाथ से राजा के प्रधानों के पास पहुंचाया जाता और यह जान पड़ता था कि उस में रुपए बहुत हैं, तब तब राजा के प्रधान और महायाजक का नाइब आकर सन्दूक को खाली करते और तब उसे फिर उसके स्थान पर रख देते थे। उन्होंने प्रतिदिन ऐसा किया और बहुत रुपए इकट्ठा किए।
12. तब राजा और यहोयादा ने वह रुपए यहोवा के भवन में काम करने वालों को दे दिए, और उन्होंने राजों और बढ़इयों को यहोवा के भवन के सुधारने के लिये, और लोहारों और ठठेरों को यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिये मजदूरी पर रखा।
13. और कारीगर काम करते गए और काम पूरा होता गया और उन्होंने परमेश्वर का भवन जैसा का तैसा बना कर दृढ़ कर दिया।
14. जब उन्होंने वह काम निपटा दिया, तब वे शेष रुपए राजा और यहोयादा के पास ले गए, और उन से यहोवा के भवन के लिये पात्र बनाए गए, अर्थात सेवा टहल करने और होमबलि चढ़ाने के पात्र और धूपदान आदि सोने चान्दी के पात्र। और जब तक यहोयादा जीवित रहा, तब तक यहोवा के भवन में होमबलि नित्य चढ़ाए जाते थे।
15. परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु हो कर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का था।
16. और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उसने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया था।
17. यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमों ने राजा के पास जा कर उसे दण्डवत की, और राजा ने उनकी मानी।
18. तब वे अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरों और मूरतों की उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का।
19. तौभी उसने उनके पास नबी भेजे कि उन को यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्होंने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्होंने कान न लगाया।
20. और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्थान पर खड़ा हो कर लोगों से कहने लगा, परमेश्वर यों कहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्यों टालते हो? ऐसा कर के तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उसने भी तुम को त्याग दिया।
21. तब लोगों ने उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया।
22. यों राजा योआश ने वह प्रीति भूल कर जो यहोयादा ने उस से की थी, उसके पुत्र को घात किया। और मरते समय उसने कहा यहोवा इस पर दृष्टि कर के इसका लेखा ले।
23. नए वर्ष के लगते अरामियों की सेना ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदा ओर यरूशलेम आकर प्रजा में से सब हाकिमों को नाश किया और उनका सब धन लूट कर दमिश्क के राजा के पास भेजा।
24. अरामियों की सेना थोड़े ही पुरुषों की तो आई, पन्तु यहोवा ने एक बहुत बड़ी सेना उनके हाथ कर दी, क्योंकि उन्होंने अपने पितरो के परमेश्वर को त्याग दिया था। और योआश को भी उन्होंने दण्ड दिया।
25. और जब वे उसे बहुत ही रोगी छोड़ गए, तब उसके कर्मचारियों ने यहोयादा याजक के पुत्रों के खून के कारण उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, उसे उसके बिछौने पर ही ऐसा मारा, कि वह मर गया; और उन्होंने उसको दाऊद पुर में मिट्टी दी, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
26. जिन्होंने उस से राजद्रोह की गोष्ठी की, वे ये थे, अर्थात अम्मोनिन, शिमात का पुत्र जाबाद और शिम्रित, मोआबिन का पुत्र यहोजाबाद।