10. आसा के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में वे यरूशलेम में इकट्ठे हुए।
11. और उसी समय उन्होंने उस लूट में से जो वे ले आए थे, सात सौ बैल और सात हजार भेड़-बकरियां, यहोवा को बलि कर के चढ़ाई।
12. और उन्होंने वाचा बान्धी कि हम अपने पूरे मन और सारे जीव से अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की खोज करेंगे।
13. और क्या बड़ा, क्या छोटा, क्या स्त्री, क्या पुरुष, जो कोई इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज न करे, वह मार डाला जाएगा।
14. और उन्होंने जयजयकार के साथ तुरहियां और नरसिंगे बजाते हुए ऊंचे शब्द से यहोवा की शपथ खाई।
15. और यह शपथ खाकर सब यहूदी आनन्दित हुए, क्योंकि उन्होंने अपने सारे मन से शपथ खाई और बडी अभिलाषा से उसको ढूंढ़ा और वह उन को मिला, और यहोवा ने चारों ओर से उन्हें विश्राम दिया।
16. वरन आसा राजा की माता माका जिसने अशेरा के पास रखने के लिए एक घिनौनी मूरत बनाई, उसको उसने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत काट कर पीस डाली और किद्रोन नाले में फूंक दी।
17. ऊंचे स्थान तो इस्राएलियों में से न ढाए गए, तौभी आसा का मन जीवन भर निष्कपट रहा।
18. और उसने जो सोना चान्दी, और पात्र उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उसने आप अर्पण किए थे, उन को परमेश्वर के भवन में पहंचा दिया।
19. और राजा आसा के राज्य के पैंतीसवें वर्ष तक फिर लड़ाई न हुई।