30. तब उसने उसके पास से मुंह फेरके दूसरे के सम्मुख हो कर वैसी ही बात कही; और लोगों ने उसे पहिले की नाईं उत्तर दिया।
31. जब दाऊद की बातों की चर्चा हुई, तब शाऊल को भी सुनाईं गई; और उसने उसे बुलवा भेजा।
32. तब दाऊद ने शाऊल से कहा, किसी मनुष्य का मन उसके कारण कच्चा न हो; तेरा दास जा कर उस पलिश्ती से लड़ेगा।
33. शाऊल ने दाऊद से कहा, तू जा कर उस पलिश्ती के विरुद्ध नहीं युद्ध कर सकता; क्योंकि तू तो लड़का ही है, और वह लड़कपन ही से योद्धा है।
34. दाऊद ने शाऊल से कहा, तेरा दास अपने पिता की भेड़ बकरियां चराता था; और जब कोई सिंह वा भालू झुंड में से मेम्ना उठा ले गया,
35. तब मैं ने उसका पीछा करके उसे मारा, और मेम्ने को उसके मुंह से छुड़ाया; और जब उसने मुझ पर चढ़ाई की, तब मैं ने उसके केश को पकड़कर उसे मार डाला।
36. तेरे दास ने सिंह और भालू दोनों को मार डाला; और वह खतनारहित पलिश्ती उनके समान हो जाएगा, क्योंकि उसने जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारा है।
37. फिर दाऊद ने कहा, यहोवा जिसने मुझ सिंह और भालू दोनों के पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा। शाऊल ने दाऊद से कहा, जा, यहोवा तेरे साथ रहे।
38. तब शाऊल ने अपने वस्त्र दाऊद को पहिनाए, और पीतल का टोप उसके सिर पर रख दिया, और झिलम उसको पहिनाया।