31. उस दिन वे मिकमाश से ले कर अय्यालोन तक पलिश्तियों को मारते गए; और लोग बहुत ही थक गए।
32. सो वे लूट पर टूटे, और भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और बछड़े ले कर भूमि पर मार के उनका मांस लोहू समेत खाने लगे।
33. जब इसका समाचार शाऊल को मिला, कि लोग लोहू समेत मांस खाकर यहोवा के विरुद्ध पाप करते हैं। तब उसने उन से कहा; तुम ने तो विश्वासघात किया है; अभी एक बड़ा पत्थर मेरे पास लुढ़का दो।
34. फिर शाऊल ने कहा, लोगों के बीच में इधर उधर फिरके उन से कहो, कि अपना अपना बैल और भेड़ शाऊल के पास ले जाओ, और वहीं बलि करके खाओ; और लोहू समेत खाकर यहोवा के विरुद्ध पाप न करो। तब सब लोगों ने उसी रात अपना अपना बैल ले जा कर वहीं बलि किया।
35. तब शाऊल ने यहोवा के लिये एक वेदी बनवाई; वह तो पहिली वेदी है जो उसने यहोवा के लिये बनवाई॥
36. फिर शाऊल ने कहा, हम इसी रात को पलिश्तियों का पीछा करके उन्हें भोर तक लूटते रहें; और उन में से एक मनुष्य को भी जीवित न छोड़ें। उन्होंने कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर। परन्तु याजक ने कहा, हम इधर परमेश्वर के समीप आएं।
37. तब शाऊल ने परमेश्वर से पुछवाया, कि क्या मैं पलिश्तियों का पीछा करूं? क्या तू उन्हें इस्राएल के हाथ में कर देगा? परन्तु उसे उस दिन कुछ उत्तर न मिला।
38. तब शाऊल ने कहा, हे प्रजा के मुख्य लोगों, इधर आकर बूझो; और देखो कि आज पाप किस प्रकार से हुआ है।
39. क्योंकि इस्राएल के छुड़ाने वाले यहोवा के जीवन की शपथ, यदि वह पाप मेरे पुत्र योनातान से हुआ हो, तौभी निश्चय वह मार डाला जाएगा। परन्तु लोगों में से किसी ने उसे उत्तर न दिया।
40. तब उसने सारे इस्राएलियों से कहा, तुम एक ओर हो, और मैं और मेरा पुत्र योनातान दूसरी और होंगे। लोगों ने शाऊल से कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर।
41. तब शाऊल ने यहोवा से कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर, सत्य बात बता। तब चिट्ठी योनातान और शाऊल के नाम पर निकली, और प्रजा बच गई।
42. फिर शाऊल ने कहा, मेरे और मेरे पुत्र योनातान के नाम पर चिट्ठी डालो। तब चिट्ठी योनातान के नाम पर निकली।