38. और उसने पीतल की दस हौदी बनाईं। एक एक हौदी में चालीस चालीस बत की समाई थी; और एक एक, चार चार हाथ चौड़ी थी, और दसों पायों में से एक एक पर, एक एक हौदी थी।
39. और उसने पांच हौदी भवन की दक्खिन की ओर, और पांच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्थात पूर्व की ओर, और दक्खिन के साम्हने धर दिया।
40. और हीराम ने हौदियों, फावडिय़ों, और कटोरों को भी बनाया। सो हीराम ने राजा सुलैमान के लिये यहोवा के भवन में जितना काम करना था, वह सब निपटा दिया,
41. अर्थात दो खम्भे, और उन कंगनियों की गोलाइयां जो दोनों खम्भों के सिरे पर थीं, और दोनों खम्भों के सिरों पर की गोलाइयों के ढांपने को दो दो जालियां, और दोनों जालियों के लिय चार चार सौ अनार,
42. अर्थात खम्भों के सिरों पर जो गोलाइयां थीं, उनके ढांपने के लिये अर्थात एक एक जाली के लिये अनारों की दो दो पांति;
43. दस पाये और इन पर की दस हौदी,
44. एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल, और हंडे, फावडिय़ां,
45. और कटोरे बने। ये सब पात्र जिन्हें हीराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिये बनाया, वह झलकाये हुए पीतल के बने।
46. राजा ने उन को यरदन की तराई में अर्थात सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टी वाली भूमि में ढाला।
47. और सुलैमान ने सब पात्रों को बहुत अधिक होने के कारण बिना तौले छोड़ दिया, पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका।
48. यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्थात सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी,
49. और चोखे सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पांच तो दक्खिन की ओर, और पांच उत्तर की ओर रखी गई; और सोने के फूल,
50. दीपक और चिमटे, और चोखे सोने के तसले, कैंचियां, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतर वाला भवन जो परमपवित्र स्थान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनों के किवाड़ों के लिये सोने के कब्जे बने।