18. क्योंकि पहिले तो मैं यह सुनता हूं, कि जब तुम कलीसिया में इकट्ठे हाते हो, तो तुम में फूट होती है और मैं कुछ कुछ प्रतीति भी करता हूं।
19. क्याकि विधर्म भी तुम में अवश्य होंगे, इसलिये कि जो लागे तुम में खरे निकले हैं, वे प्रगट हो जांए।
20. सो तुम जो एक जगह में इकट्ठे होते हो तो यह प्रभु भोज खाने के लिये नहीं।
21. क्योंकि खाने के समय एक दूसरे से पहिले अपना भोज खा लेता है, सो कोई तो भूखा रहता है, और कोई मतवाला हो जाता है।
22. क्या खाने पीने के लिये तुम्हारे घर नहीं या परमेश्वर की कलीसिया को तुच्छ जानते हो, और जिन के पास नहीं है उन्हें लज्ज़ित करते हो मैं तुम से क्या कहूं? क्या इस बात में तुम्हारी प्रशंसा करूं? मैं प्रशंसा नहीं करता।
23. क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया रोटी ली।
24. और धन्यवाद करके उसे तोड़ी, और कहा; कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।
25. इसी रीति से उस ने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा; यह कटोरा मेरे लोहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।
26. क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।
27. इसलिये जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा।
28. इसलिये मनुष्य अपने आप को जांच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए।
29. क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्ड लाता है।
30. इसी कारण तुम में से बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए।
31. यदि हम अपने आप में जांचते, तो दण्ड न पाते।
32. परन्तु प्रभु हमें दण्ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिये कि हम संसार के साथ दोषी न ठहरें।
33. इसलिये, हे मेरे भाइयों, जब तुम खाने के लिये इकट्ठे होते हो, तो एक दूसरे के लिये ठहरा करो।