22. क्या हम प्रभु को रिस दिलाते हैं ?क्या हम उस से शक्तिमान हैं?
23. सब वस्तुएं मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं: सब वस्तुएं मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नित नहीं।
24. कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढे, वरन औरों की।
25. जो कुछ कस्साइयों के यहां बिकता है, वह खाओ और विवेक के कारण कुछ न पूछो।
26. क्योंकि पृथ्वी और उसकी भरपूरी प्रभु की है।