24. अन्यजातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्चर्य-कर्मों का वर्णन करो।
25. क्योंकि यहोवा महान और स्तुति के अति योग्य है, वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है।
26. क्योंकि देश देश के सब देवता मूतिर्यां ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है।
27. उसके चारों ओर वैभव और ऐश्वर्य है; उसके स्थान में सामर्थ और आनन्द है।
28. हे देश देश के कुलो, यहोवा का गुणानुवाद करो, ।
29. यहोवा की महिमा और सामर्थ को मानो। यहोवा के नाम की महिमा ऐसी मानो जो उसके नाम के योग्य है। भेंट ले कर उसके सम्मुख आाओ, पवित्रता से शोभायमान हो कर यहोवा को दण्डवत करो।
30. हे सारी पृथ्वी के लोगो उसके साम्हने थरथराओ! जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं।
31. आकाश आनन्द करे और पृथ्वी मगन हो, और जाति जाति में लोग कहें, कि यहोवा राजा हुआ है।
32. समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, मैदान और जो कुछ उस में है सो प्रफुल्लित हों।