19. उस समय तो तुम गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े और उस देश में परदेशी थे।
20. और वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक राज्य से दूसरे में फिरते तो रहे,
21. परन्तु उसने किसी मनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, कि
22. मेरे अभिषिक्तों को मत छुओ, और न मेरे नबियों की हानि करो।
23. हे समस्त पृथ्वी के लोगो यहोवा का गीत गाओ। प्रतिदिन उसके किए हुए उद्धार का शुभ समाचार सुनाते रहो।
24. अन्यजातियों में उसकी महिमा का, और देश देश के लोगों में उसके आश्चर्य-कर्मों का वर्णन करो।
25. क्योंकि यहोवा महान और स्तुति के अति योग्य है, वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है।
26. क्योंकि देश देश के सब देवता मूतिर्यां ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है।
27. उसके चारों ओर वैभव और ऐश्वर्य है; उसके स्थान में सामर्थ और आनन्द है।
28. हे देश देश के कुलो, यहोवा का गुणानुवाद करो, ।
29. यहोवा की महिमा और सामर्थ को मानो। यहोवा के नाम की महिमा ऐसी मानो जो उसके नाम के योग्य है। भेंट ले कर उसके सम्मुख आाओ, पवित्रता से शोभायमान हो कर यहोवा को दण्डवत करो।